Sawan Somvar Vrat Katha: सावन में सुनें, सोमवार व्रत​कथा, भगवान शिव पूरी करेंगे सभी इच्छाएं

सावन में शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में शांति और समृद्धि आती है। सावन माह में सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha) का श्रवण और पाठ पूजा को सफ़ल बनाती है।

Sawan Somvar Vrat Katha 2025: अगर आपकी कोई मनोकामना पूरी नहीं हो रही है, करियर में लगातार मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल रही या फिर निजी जीवन में किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं—तो आपको इस सावन शिव जी पूजा अवश्य करनी चाहिए। 

मान्यता है कि सावन में शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में शांति और समृद्धि आती है। सावन का माह भगवान शिव को समर्पित श्रावण व्रत बेहद ही शुभकारी होता है। इस दिन सावन व्रत कथा का श्रवण और पाठ पूजा को सफ़ल बनाती है।

आपको बता दें, इस वर्ष 2025 में सावन माह 11 जुलाई (शुक्रवार) से 9 अगस्त (शनिवार) तक रहेगी।

Sawan Somvar Vrat Katha 2025 (सावन सोमवार व्रत कथा)

बहुत प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक अत्यंत धनवान साहूकार रहता था। उसके पास धन-धान्य, सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं थी, परंतु संतान न होने के कारण वह और उसकी पत्नी अत्यंत दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की इच्छा से वह साहूकार हर सोमवार को व्रत रखता और भगवान शिव की श्रद्धा से पूजा करता, शिव मंदिर जाकर दीपक जलाता और प्रार्थना करता।

उसकी निष्ठा और श्रद्धा को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा—

“हे महादेव! यह साहूकार वर्षों से आपकी सच्चे मन से पूजा कर रहा है, फिर भी आप इसे संतान क्यों नहीं दे रहे?”

तब भगवान शिव ने उत्तर दिया—

“हे पार्वती! इस साहूकार के पूर्व जन्म के कर्म ऐसे हैं कि इसके भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा है।”

माता पार्वती ने करुणावश बार-बार भगवान शिव से आग्रह किया कि इस भक्त को संतान का वरदान दें। अंततः शिवजी ने माता की बात मान ली और एक रात साहूकार को स्वप्न में दर्शन देकर कहा—

“तेरी पूजा से प्रसन्न होकर मैं तुझे पुत्र प्राप्ति का वर देता हूं, परंतु ध्यान रहे, वह पुत्र सिर्फ 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।”

साहूकार की प्रसन्नता और चिंता दोनों बढ़ गईं। कुछ समय बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई और एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम अमर रखा गया।

जब अमर 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार ने उसे पढ़ाई के लिए अपने मामा के साथ काशी भेज दिया। जाते समय मामा से कहा—“जहाँ-जहाँ से गुजरना, वहाँ यज्ञ कराना और ब्राह्मणों को भोजन कराना।”

एक दिन मार्ग में वे एक ऐसे नगर पहुंचे जहाँ राजकुमारी का विवाह हो रहा था। परंतु जिस राजकुमार से विवाह होना था, वह एक आंख से काना था। यह बात छुपाई जा रही थी। जब दूल्हे के परिवार वालों ने अमर को देखा, तो उसे असली दूल्हे की जगह बैठने को कहा। अमर मान गया और राजकुमारी से विवाह हो गया।

विवाह के बाद अमर और उसका मामा काशी चले गए। वहां पहुंचकर अमर ने अपनी पत्नी को एक पत्र लिखा, जिसमें सच्चाई बता दी कि असली दूल्हा कौन था। राजकुमारी ने सच्चाई जानकर अपने माता-पिता को सब कुछ बताया और उस काने दूल्हे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

समय बीतता गया और जब अमर 16 वर्ष का हुआ, तब एक दिन यज्ञ के बाद उसकी मृत्यु हो गई। मामा ने उसे ज़मीन पर मूर्छित देखा तो फूट-फूटकर रोने लगे।

ठीक उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। पार्वती जी ने विलाप सुना और शिवजी से अनुरोध किया कि वे उस रोते हुए व्यक्ति की पीड़ा को दूर करें। भगवान शिव ने बताया कि यही वही अमर है जिसे उन्होंने 16 वर्ष की आयु तक जीने का वरदान दिया था।

माता पार्वती ने पुनः निवेदन किया—

“हे नाथ! इसके पिता ने पूरे जीवन आपकी श्रद्धा से पूजा की है, हर सोमवार व्रत रखा है। कृपा करके इसे जीवनदान दीजिए।”

भगवान शिव ने प्रसन्न होकर अमर को पुनः जीवनदान दिया।

जब अमर जीवित हुआ, तो उसका मामा अत्यंत प्रसन्न हुआ। वे दोनों काशी से पढ़ाई पूरी कर घर लौटे। उसी नगर में पुनः रुकते समय अमर की पत्नी ने उसे पहचान लिया और उसके साथ विदा हो गई। साहूकार और उसकी पत्नी जब अमर को जीवित देखकर आनंदित हुए, तो उन्होंने भगवान शिव का धन्यवाद किया।

इस प्रकार भगवान शिव की निरंतर आराधना से साहूकार को न केवल पुत्र प्राप्ति हुई बल्कि उसके पुत्र को जीवनदान भी मिला। इस कथा का श्रवण करने से सभी मनुष्य पुण्य के भागीदार बनते हैं।

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